Saturday, June 28, 2008
हम आयें हैं यूपी -बिहार लुटने....
Thursday, June 26, 2008
पंजाब में अन्नदाता बने पुरबिये
पंजाब में मजदूरों की कमी के कारण जहाँ किसानो की कमर टूटी है वहीँ अब मजदूरों की कमी से इंडस्ट्री भी प्रभावित होने लगे है । पिछले दो महीने से पंजाब में उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य प्रदेशों से आने वाले मजदूर नही आ रहे हैं । इसका सबसे बड़ा कारण पंजाब के बाहर से आने वाले लोगों को पंजाबियों द्वारा बेफिजूल टिप्पणी करना भी है । इस सबके बावजूद उत्तर प्रदेश व बिहार में इंडस्ट्री के साथ-साथ अब रोजगार के अवसर मुहैया करवाने में सरकार काफी हद तक सफल रही है । पंजाब के जो लोग उत्तर प्रदेश, बिहार व गैर पंजाबी के मजाक उड़ते रहे अब पंजाबियों के लिए अन्नदाता के रूप में नजर आने लगे हैं ।
Thursday, June 19, 2008
बिहारी मजदूरों के आगे गिड़गिड़ाए पंजाबी किसान
पंजाब में पूरबिए
बिहार के विकास और पंजाब की खेती में या संबंध है? यह सवाल बेमानी नहीं है। अभी पंजाब के किसान अपनी खेती को लेकर चिंतित हैं। कारण है बिहार में चल रहे विकास कार्य। बिहार में निर्माण कार्यो के कारण बेरोजगारों को लगातार काम मिल रहा है। उसकी वजह से वे मजदूर जो पंजाब का रूख करते थे इस बार बिहार आने पर नहीं लौटे। इससे पंजाब में धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हो गया। कई अखबारों ने एक फोटो छापी कि जालंधर रेलवे स्टेशन पर एक संपन्न किसान विपन्न से दिख रहे मजदूर को हाथ जोड़कर रोक रहा है। हाथ जोड़ने का कारण है कि यहां की खेती और इंडस्ट्री बिहारऱ्यूपी के मजदूरों पर निर्भर है। आतंकवाद के समय में भी जब स्थानीय लोग खेतों पर नहीं जाते थे या पलायन कर गए थे तब भी इन्हीं मजदूरों ने यहां की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा। हरित क्रांति की नींव बिहार यूपी के मजदूरों की मेहनत पर ही रखी गई। उस दौरान बिहार यूपी के काफी मजदूर आतंकियों की गोलियोंं के शिकार बने लेकिन इसके बदले उन्हें कोई महत्व नहीं मिला। पुलिस ने भी उनकी हत्याआें को अपने रिकार्ड में दर्ज नहीं किया। कोई सामाजिक संस्था या व्यि त भी नहीं दिखता जो पंजाब में पूरबियों की स्थिति पर जमीनी तौर पर काम कर रहा हो। यहां के विकास में इस योगदान के बावजूद पंजाब में बिहारऱ्यूपी के लोगों को भैय्ये कहा जाता है। ये बड़े भाई के समान आदर भाव वाला शब्द नहीं है। इसे वे गाली के सेंस में प्रयोग करते हैं। उ्न्हें भैय्यों की जरूरत है, वे उस पर भरोसा भी करते हैं पर यह बर्दाश्त नहीं करते कि वह मजदूर के स्तर से उपर का जीवन जीए। - मृत्युंजय कुमार
इंटरनेट पर सवार भोजपुरी
कुछ दिन पहले तक यह सोचना भी मुश्किल था कि लिट्टी-चोखा का जायका इंटरनेट के जरिए फिजी तक पहुंच सकेगा या फिर मॉरिशस में रहने वाले, 71 वर्षीय सौरव परमानंद वेबसाइट पर भोजपुरी का लेख पढ़ सकेंगे। हालांकि अब माहौल बदल चुका है। गंवई भाषा कही जाने वाली भोजपुरी एबीसीडी, यानी आरा, बलिया, छपरा, देवरिया की सीमा से बाहर निकलकर सिंगापुर, सूरीनाम, वेस्टइंडीज, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और जापान समेत 49 देशों तक पहुंच रही है। दरअसल, इन दिनों इंटरनेट पर भोजपुरी से संबंधित वेबसाइट्स की भरमार है। यहां न सिर्फ देशी व्यंजन बनाने की विधि उपलब्ध है, बल्कि ऑर्डर देकर सतुआ, पंचांग, चीनिया केला, गमछा और जर्दा भी मंगाया जा सकता है। गौरतलब है कि 23 नवंबर, 2005 को 43 देशों के 11 हजार, 56 लोगों ने बिहार के विधानसभा चुनाव परिणामों की जानकारी हासिल करने के लिए इन साइट्स की मदद ली। कई लोग भोजपुरिया शादी विकल्प से मनपसंद साथी ढूंढने की कोशिश भी कर रहे हैं। गीत-संगीत की बात करें, तो http://madhu90210।tripod।com/id23।html पर लॉग ऑन कर मनोज तिवारी मृदुल के बगलवाली जान मारली और शहर के तितली घूमे होके मोपेड पे सवार का आनंद लिया जा सकता है, जबकि गुड्डू रंगीला के हमरा हऊ चाहीं व ऐ चिंटुआ के दीदी तनी प्यार करै दे गीत भी साइट पर उपलब्ध हैं। en।wikipedia।org/wiki/Bhojpuri_language पर विजिट कर जाना जा सकता है कि इंडो-ईरानियन लैंग्वेज श्रेणी के तहत भोजपुरी किस स्थान पर है। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका की वेबसाइट की शुरुआत का हो, का हाल बा! के अपनत्व भरे संबोधन के साथ होती है, वहीं http://222।bhojpuri2orld।org/क्लिक करने पर राउर स्वागत बा जैसी इबारत पढ़ने को मिलती है। यहां लागी नाहीं छूटे रामा, गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबौ, बलम परदेसिया और गंगा किनारे मोरा गांव जैसी चर्चित फिल्मों के गीत भी सुने जा सकते हैं। वैसे, पिछले दिनों डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन द्वारा मुंबईवासी शशि सिंह और सुधीर कुमार की भोजपुरिया।कॉम वेबसाइट को ई कल्चर श्रेणी में पहला पुरस्कार मिलने के साथ यह बात प्रमाणित हो गई है कि साइबर की दुनिया में भोजपुरी धीरे-धीरे ही सही, धाक जमा रही है।