Thursday, July 10, 2008

सरस्वती पूजन के साथ पूर्वांचल विकास महासभा की स्थापना


सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ेगी महासभा : दीनानाथ


नशे के खिलाफ जागरुकता अभियान छेड़ेगे


पूर्वांचल विकास महासभा के तत्वाधान में फोकल प्वाइंट में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की बड़े ही धूमधाम से पूजा की गई । इसके बाद अखंड मानस पाठ और हवन यज्ञ संपन हुआ । पूजन के बाद पूर्वांचल विकास महासभा की विधिवत स्थापना की गई । चेयरमैन दीनबंधु दीनानाथ की अध्यक्षता में पदाधिकारियों ने महासभा की नीतियों को सबके समक्ष रखा । पूजा व यज्ञ का शुभारंभ पूर्वांचल महासभा के चेयरमैन दीनबंधू दीनानाथ और मुख्यअतिथि अमित गुप्ता द्वारा अखंड ज्योति प्रज्जवलित कर किया गया । चेयरमैन दीनानाथ ने कहा बसंत पंचमी के मौके पर मां सरस्वती से जुड़े प्रतीकों के अर्थ को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए । उन्होंने कहा कि पूर्वांचल विकास महासभा गरीबों के हक के लिए लड़ेगी । नशे के खिलाफ जागरुकता रैलियां निकालने के साथ-साथ खेल को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर विभिन्न खेलों को प्रायोजित करेगी । समाज में फैले कुरीतियों के खिलाफ महासभा आवाज बुलंद करेगा । मुख्य अतिथि अमित गुप्ता ने महासभा के सभी पदाधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि समाज में जागरुकता लाने के एसे ही संस्थाओं की जरूरत है । कार्यक्रम का संचालन पूजा समिति के प्रधान पडिंत एके मिश्रा द्वारा किया गया। इस मौके पर महासभा की जालंधर इकाई के प्रधान सचिदानंद सिंह, किशोर सिंह, मनोज सिंह, भागवत गिरी , सुरेश सिंह, जगन्नाथ पांडेय, सुनील पांडेय, राकेश कुमार रोडे, मोहम्मद आलम, विनोद कुमार, श्रवण यादव, सतिंदर कुमार, शिव शंकर भगत, वीरेंद्र सिंह, देशराज आदि ने पूर्वांचल विकास महासभा के स्थापना का अखंड ज्योति प्रज्जवलित कर महासंकल्प लिया। सदस्यता अभियान चलाएगी । महासभा के चेयरमैन दीनानाथ के अनुसार महासभा पूरे प्रदेश में सदस्यता अभियान चलाएगी , इसके लिए पदाधिकारियों की जल्द ही बैठक बुलाई जाएगी । इसमें प्राथमिकता के आधार पर प्रदेश के बाहर के लोगों को सदस्य बनाया जाएगा ।

Saturday, June 28, 2008

हम आयें हैं यूपी -बिहार लुटने....


कहने को तो बिहार व यूपी में 'सुशासन' है। यहाँ काफ़ी हद तक बद्लाव आए हैं। परिवर्तन हुए हैं। राज्य तरक्की को लात मार रही है। विधि- व्यवस्था में सुधार आए हैं।विकास की बात तो कुछ हद तक समझ में आती है, पर विधि-व्यवस्था में सुधार की बात पाच नही रही है। क्योंकि यहाँ विधि-व्यवस्था कानून से नही,नेता की जाति से तय होती है। अमन-चैन गुंडों के सुपुर्द है। रही सही कसर यहाँ की पुलिस पुरी कर देती है। सच पूछे तो राज्य को सरकार नही, बल्कि बाहुबली नेता, पुलिस और रंगदार ही चलाते हैं। और रंगदारी वसूलना तो पुलिस का परम कर्तव्य है। इसलिए उन्होंने पारदर्शिता के लिए बहाल किए गए कानून 'सूचना के अधिकार' को भी कमाई का ज़रिया बना लिया है। सूचना मांगने वालो को जेलों में डालने की बात पुरानी पड चुकी है। अब तो आवेदकों से सूचना जमा करने का भी पैसा वसूल रही है यूपी की पुलिस....जी हाँ! यूपी पुलिस ने अधिकार से बचने और अपनी जेब गरम करने का आसान रास्ता निकाल लिया है। जब सुल्तानपुर के डॉक्टर राकेश सिंह ने पुलिस महानिदेशक से राज्य में मुसहर जाति के ख़िलाफ़ चल रहे पुलिसिया कारवाई के बारे में सूचना मांगी तो पुलिस महानिरक्षक ने श्री सिंह को बताया कि "इसके लिए 7.15 लाख रुपए जमा करें तभी मिलेगी आपको सूचना...... क्योंकि सूचना मुख्यालय में उपलब्ध नही है, जिससे वांछित सूचना दिया जाना सम्भव नही है। इन सूचनाओ का सम्बन्ध पुरे प्रदेश के थानों से है, इस कारण सूचना संकलित करने में सात लाख पन्द्रह हज़ार रुपये का खर्च आने कि संभावना है, जिसे आप जमा कर दे। "बात अगर आर टी आई कि करें तो एक्ट में कहीं भी सूचना संकलित करने हेतु उस पर होने वाले व्यय के लेने का प्रावधान नही है, पर पुलिस महानिरक्षक पाण्डेय साहेब एक्ट पर कोई बहस नही करना चाहते...... आप कर भी क्या सकते हैं, और वैसे भी लुटने वालों को लुटने का बहाना चाहिए........... साभार -भड़ास

Thursday, June 26, 2008

पंजाब में अन्नदाता बने पुरबिये

पंजाब में मजदूरों की कमी के कारण जहाँ किसानो की कमर टूटी है वहीँ अब मजदूरों की कमी से इंडस्ट्री भी प्रभावित होने लगे है । पिछले दो महीने से पंजाब में उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य प्रदेशों से आने वाले मजदूर नही आ रहे हैं । इसका सबसे बड़ा कारण पंजाब के बाहर से आने वाले लोगों को पंजाबियों द्वारा बेफिजूल टिप्पणी करना भी है । इस सबके बावजूद उत्तर प्रदेश व बिहार में इंडस्ट्री के साथ-साथ अब रोजगार के अवसर मुहैया करवाने में सरकार काफी हद तक सफल रही है । पंजाब के जो लोग उत्तर प्रदेश, बिहार व गैर पंजाबी के मजाक उड़ते रहे अब पंजाबियों के लिए अन्नदाता के रूप में नजर आने लगे हैं ।

Thursday, June 19, 2008

बिहारी मजदूरों के आगे गिड़गिड़ाए पंजाबी किसान


पंजाब में पूरबिए

बिहार के विकास और पंजाब की खेती में या संबंध है? यह सवाल बेमानी नहीं है। अभी पंजाब के किसान अपनी खेती को लेकर चिंतित हैं। कारण है बिहार में चल रहे विकास कार्य। बिहार में निर्माण कार्यो के कारण बेरोजगारों को लगातार काम मिल रहा है। उसकी वजह से वे मजदूर जो पंजाब का रूख करते थे इस बार बिहार आने पर नहीं लौटे। इससे पंजाब में धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हो गया। कई अखबारों ने एक फोटो छापी कि जालंधर रेलवे स्टेशन पर एक संपन्न किसान विपन्न से दिख रहे मजदूर को हाथ जोड़कर रोक रहा है। हाथ जोड़ने का कारण है कि यहां की खेती और इंडस्ट्री बिहारऱ्यूपी के मजदूरों पर निर्भर है। आतंकवाद के समय में भी जब स्थानीय लोग खेतों पर नहीं जाते थे या पलायन कर गए थे तब भी इन्हीं मजदूरों ने यहां की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा। हरित क्रांति की नींव बिहार यूपी के मजदूरों की मेहनत पर ही रखी गई। उस दौरान बिहार यूपी के काफी मजदूर आतंकियों की गोलियोंं के शिकार बने लेकिन इसके बदले उन्हें कोई महत्व नहीं मिला। पुलिस ने भी उनकी हत्याआें को अपने रिकार्ड में दर्ज नहीं किया। कोई सामाजिक संस्था या व्यि त भी नहीं दिखता जो पंजाब में पूरबियों की स्थिति पर जमीनी तौर पर काम कर रहा हो। यहां के विकास में इस योगदान के बावजूद पंजाब में बिहारऱ्यूपी के लोगों को भैय्ये कहा जाता है। ये बड़े भाई के समान आदर भाव वाला शब्द नहीं है। इसे वे गाली के सेंस में प्रयोग करते हैं। उ्न्हें भैय्यों की जरूरत है, वे उस पर भरोसा भी करते हैं पर यह बर्दाश्त नहीं करते कि वह मजदूर के स्तर से उपर का जीवन जीए। - मृत्युंजय कुमार

इंटरनेट पर सवार भोजपुरी

चण्डीदत्त शुक्ल , नई दिल्ली
कुछ दिन पहले तक यह सोचना भी मुश्किल था कि लिट्टी-चोखा का जायका इंटरनेट के जरिए फिजी तक पहुंच सकेगा या फिर मॉरिशस में रहने वाले, 71 वर्षीय सौरव परमानंद वेबसाइट पर भोजपुरी का लेख पढ़ सकेंगे। हालांकि अब माहौल बदल चुका है। गंवई भाषा कही जाने वाली भोजपुरी एबीसीडी, यानी आरा, बलिया, छपरा, देवरिया की सीमा से बाहर निकलकर सिंगापुर, सूरीनाम, वेस्टइंडीज, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और जापान समेत 49 देशों तक पहुंच रही है। दरअसल, इन दिनों इंटरनेट पर भोजपुरी से संबंधित वेबसाइट्स की भरमार है। यहां न सिर्फ देशी व्यंजन बनाने की विधि उपलब्ध है, बल्कि ऑर्डर देकर सतुआ, पंचांग, चीनिया केला, गमछा और जर्दा भी मंगाया जा सकता है। गौरतलब है कि 23 नवंबर, 2005 को 43 देशों के 11 हजार, 56 लोगों ने बिहार के विधानसभा चुनाव परिणामों की जानकारी हासिल करने के लिए इन साइट्स की मदद ली। कई लोग भोजपुरिया शादी विकल्प से मनपसंद साथी ढूंढने की कोशिश भी कर रहे हैं। गीत-संगीत की बात करें, तो http://madhu90210।tripod।com/id23।html पर लॉग ऑन कर मनोज तिवारी मृदुल के बगलवाली जान मारली और शहर के तितली घूमे होके मोपेड पे सवार का आनंद लिया जा सकता है, जबकि गुड्डू रंगीला के हमरा हऊ चाहीं व ऐ चिंटुआ के दीदी तनी प्यार करै दे गीत भी साइट पर उपलब्ध हैं। en।wikipedia।org/wiki/Bhojpuri_language पर विजिट कर जाना जा सकता है कि इंडो-ईरानियन लैंग्वेज श्रेणी के तहत भोजपुरी किस स्थान पर है। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका की वेबसाइट की शुरुआत का हो, का हाल बा! के अपनत्व भरे संबोधन के साथ होती है, वहीं http://222।bhojpuri2orld।org/क्लिक करने पर राउर स्वागत बा जैसी इबारत पढ़ने को मिलती है। यहां लागी नाहीं छूटे रामा, गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबौ, बलम परदेसिया और गंगा किनारे मोरा गांव जैसी चर्चित फिल्मों के गीत भी सुने जा सकते हैं। वैसे, पिछले दिनों डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन द्वारा मुंबईवासी शशि सिंह और सुधीर कुमार की भोजपुरिया।कॉम वेबसाइट को ई कल्चर श्रेणी में पहला पुरस्कार मिलने के साथ यह बात प्रमाणित हो गई है कि साइबर की दुनिया में भोजपुरी धीरे-धीरे ही सही, धाक जमा रही है।
पूर्वांचल विकास महासभा